مجموعه نمایشنامه از ادبیات هندی
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काव्य और गध्य का एक रूप है। रचना श्रवण ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के में रसानुभूति कराती है उसे नाटक दृश्य-काव्य कहते हैं में श्रव्य काव्य से अधिक रमणीयता होती है। काव्य होने के कारण यह लोक चेतना से अपेक्षाकृत अधिक घनिष्ठ रूप से संबद्ध है में लोक चेतना को नाटक के लेखन और मंचन की मूल प्रेरणा माना गया है
में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। काल भारतेन्दु तथा उनके समकालीन नाटककारों ने लोक चेतना के के लिए नाटकों रचना की इसलिए उस समय की समस्याओं को की समस्याओं नाटकों
जैसाकि जा चुका है हिन्दी ، हिन्दी में साहित्यिक रंगमंच के निर्माण का श्रीगणेश आगाहसन लखनवी लखनवी लखनवी लखनवी लखनवी लखनवी लखनवी गीति गीति गीति गीति गीति गीति गीति गीति रूपक गीति रूपक रूपक तो यह है कि ‘इंदर की की की वास्तव रंगमंचीय कृति नहीं थी। शामियाने के नीचे खुला स्टेज रहता था। की तरह ओर दर्शक बैठते थे ، एक ओर तख्त पर राजा इंदर आसन लगा दिया था था ، साथ में परियों के लिए कुर्सियाँ रखी जाती के पीछे एक लाल रंग का पर्दा लटका दिया जाता जाता था के पीछे से पात्रों का प्रवेश कराया जाता था। राजा इंदर ، परियाँ आदि पात्र एक बार आकर वहीं उपस्थित रहते थे। अपने संवाद बोलकर वापस नहीं जाते थे।